दूसरी ओर अब इस सीधी भर्ती में यदि अनुभव के आधार पर ही बोनस अंक दिए जाने हैं तो निजी क्षेत्र में सेवा देने वालों को इससे वंचित क्यों किया जा रहा है? इसे लेकर दूसरे परीक्षार्थी आवाज उठा रहे हैं, जिसका जिम्मेदारों के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। यहां हम बता दें कि राज्य में पहली बार फार्मासिस्ट पद के लिए सीधी भर्ती परीक्षा हो रही है। इसके 1,478 पद के लिए करीब साढ़े सत्रह हजार अभ्यार्थियों ने आवेदन किया है।
भर्ती के लिए 80 अंक की लिखित परीक्षा होगी। इसके अलावा अनुभव के आधार पर अभ्यर्थियों को 20 तक बोनस अंक दिए जाएंगे। ये बोनस अंक सरकारी योजनाओं और एजेंसियों में काम करने वालों को ही दिए जाने हैं। चिकित्सा विभाग के अनुसार करीब 1,500 अभ्यार्थियों ने बोनस अंक का लाभ लेने के लिए आवेदन किया है। ये अभ्यर्थी परीक्षा दिए बिना ही अपने प्रतिस्पर्धियों से 20 अंक तक आगे हो जाएंगे। ऐसे में बोनस अंक का लाभ प्राप्त अभ्यर्थियों के चयनित होने की संभावना पहले ही बन गई है।
दरअसल एनएचआरएम में तैनात फार्मासिस्ट लम्बे समय से नियमित नियुक्ति की मांग कर रहे थे। इसके पीछे तर्क था कि उनका चयन सरकारी भर्तियों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से ही किया गया है। नियुक्ति की जगह सरकार ने इस भर्ती में एनएचआरएम अभ्यर्थियों के लिए बोनस अंक देने की घोषणा की थी। इसके बाद सहकारी संस्थाओं और दूसरी सरकारी योजनाओं में काम करने वालों को भी बोनस अंक देने पर सरकार ने सहमति जता दी। जहां पर फार्मासिस्ट लगाने में कोई पारदर्शिता नहीं बरती जाती।
जगजाहिर है कि सहकारी संस्थाओं में फार्मासिस्ट लगाए जाने में चहेतों को वरीयता मिलने के आरोप लगते रहे हैं। दूसरी ओर रिलीफ सोसायटियों द्वारा दवा बिकवाने का काम न्यूनतम बोली लगाने वाले फार्मासिस्ट को देती है। इसी तरह से दूसरी एजेंसियों में भर्ती होती है। जब बोनस अंकों लाभ ऐसे अभ्यर्थियों को भी मिलने वाला है जो बिना प्रतिस्पर्धा से सरकारी एजेंसियों की सेवाओं में लगे तो फिर निजी क्षेत्र में सेवाएं देने वालों को भी यह लाभ मिलना चाहिए।
इस मुद्दे पर फार्मासिस्ट संगठन भी सहमति जता रहे हैं। निजी दुकानों और अस्पतालों में दवा वितरण का काम करने वाले फार्मासिस्ट भी वही काम करते हैं जो इन सरकारी एजेंसियों में करवाया जा रहा है। दूसरी और सुप्रीम कोर्ट भी अपने कई निर्णयों में यह व्यवस्था दे चुका है। जहां समान योग्यता वाले अभ्यार्थियों में सरकारी और गैर सरकारी अनुभव के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
सरकारी लापरवाही भुगतेंगे प्रतिभावान फार्मासिस्ट
राजस्थान फार्मासिस्ट एसोसिएशन प्रदेशाध्यक्ष कैलाश अटल से बात बोनस अंक के दायरे में जिन एजेंसियों को शामिल किया गया उनमें फार्मासिस्टों का चयन कैसे होता है? एन एचआरएम में भर्ती के लिए पूरी तरह से सरकारी भर्ती जैसी प्रक्रिया अपनाई गई थी। सहकारिता संस्थाओं और रिलीफ सोसायटियों में पूरी तरह से ठेके पर काम है मेरिट बनाने जैसा कोई सिस्टम नहीं है।
एन एचआरएम के कितने कर्मचारियों को कितने बोनस अंकों का लाभ होगा? करीब 250 कर्मचारी हैं जिन्हें केवल आठ अंक मिलेंगे। बोनस अंकों का सबसे ज्यादा फायदा बिना मेरिट के आधार पर ऐसी एजेंसियों में नौकरी देने वाले उठाएंगे। तो क्या आप ठगा सा महसूस कर रहे हैं? हमने नियमित करने की मांग की थी। बोनस अंक का झुनझुना थमा बहलाया फिर संदेहास्पद तरीके से सेवाओं में लगे लोगों को भी बोनस अंक देने पर सहमति जता दी। उन्हें हमसे ज्यादा बोनस अंक मिलेंगे। इससे अच्छा तो अंक देने से ही इंकार कर देती। सरकार ने मामला ठंग से डील नहीं कर हमें धोखा दिया है।
सरकारी और गैर सरकारी सेवा के आधार पर भेदभाव गलत
समान योग्यता वाले अभ्यर्थियों के बीच सरकारी और गैर सरकारी सेवा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की कई बार रूलिंग आ चुकी हैं। -बसंती लाल बाबेल, पूर्व न्यायाधीश
16,000 फार्मासिस्टों के साथ छलावा
निजी क्षेत्र में काम करने वाले फार्मासिस्टों को भी बोनस अंक मिलने चाहिए। सरकारी योजनाओं में काम करने वाले फार्मासिस्ट भी वही काम करते हैं जो निजी क्षेत्र में करते हैं। वर्तमान निर्णय से केवल 1,500 अभ्यर्थियों को लाभ मिलेगा। यह भर्ती में शामिल हो रहे शेष 16,000 फार्मासिस्टों से छलावा है।
-प्रवीण सैन, अध्यक्ष, फार्मा वेलफेयर यूथ संस्थान
निजी क्षेत्र की विश्वसनीयता पर संदेह
चिकित्सा विभाग के प्रमुख सचिव बी.एन.शर्मा से बात फार्मासिस्ट भर्ती परीक्षा में निजी क्षेत्र में सेवाएं देने वालों को बोनस अंक क्यों नहीं दिए जा रहे? वहां सेवा देने वालों को मिलने वाले प्रमाणपत्रों की विश्वसनीयता पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। ड्रग कंट्रोल अथॉरिटी द्वारा जारी जिन फार्मासिस्टों को लाइसेंस जारी किया गया है, उनके अनुभव पर तो भरोसा किया जा सकता है? कथित तौर पर काम करने वालों की सच्चाई किसी से नहीं छिपी। बोनस अंक किसे देने हैं। यह निर्णय पूर्णतया कैबिनेट का है।