खतरे में लाखों नौकरियां, निवेशकों ने एक लाख करोड़ खींचे
मुंबई/नई दिल्ली. आर्थिक रफ्तार में लगातार आ रही कमी से देश की माली हालत हांफने लगी है। हर तिमाही में विकास दर के गिरते आंकड़ों का असर अब नौकरियां में गिरावट के तौर पर दिखने लगा है। यही नहीं केंद्र सरकार की नीतियों पर उठते सवाल के बीच अर्थव्यवस्था की तस्वीर तमाम अनिश्चितताओं से भरी है, जो माहौल को और खराब कर रही है। रही सही कसर बाज़ार पूरी कर रहा है। टैक्स नीतियों में बदलाव खासकर वोडाफोन पर कर लगाने के लिए पुराने कानून में बदलाव के फैसले के बाद विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय बाज़ार से करीब 1 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं।
इन सबका नतीजा नौकरियों में कमी और छंटनी के तौर पर सामने आ रहा है, जिससे आम आदमी सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। उद्योग जगत के लिए निराशाजनक माहौल के चलते कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। जिन लाखों लोगों की नौकरियों पर संकट के बादल छाए हुए हैं, उनमें से संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग शामिल हैं। खास बात यह है कि मंदी का असर रोजी रोटी का किसी तरह से जुगाड़ करने वालों से लेकर आला पदों पर काम कर रहे एक्जीक्यूटिव तक पर होगा।
नौकरियों का संकट टेक्सटाइल जैसे उद्योगों में साफ झलक रहा है। कृषि के बाद देश में सबसे अधिक रोज़गार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर में मुश्किल हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते तीन सालों में संगठित क्षेत्र में काम कर रही 123 कॉटन मिलें बंद हो गईं, जिसमें 44,681 लोग काम कर रहे थे। तमिलनाडु और महाराष्ट्र में ऐसी मिलें सबसे ज़्यादा बंद हुई हैं।
जानकारों के मुताबिक कॉटन यार्न के दाम में गिरावट के अलावा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मांग में आई कमी की वजह से टेक्सटाइल सेक्टर का बुरा हाल हो गया है। अमेरिका और यूरोप में आर्थिक संकट ने मामले को और गंभीर बना दिया है। गौरतलब है कि देश का 65 फीसदी टेक्सटाइल निर्यात अमेरिका और यूरोप में होता है।
इन सबका नतीजा नौकरियों में कमी और छंटनी के तौर पर सामने आ रहा है, जिससे आम आदमी सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। उद्योग जगत के लिए निराशाजनक माहौल के चलते कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। जिन लाखों लोगों की नौकरियों पर संकट के बादल छाए हुए हैं, उनमें से संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग शामिल हैं। खास बात यह है कि मंदी का असर रोजी रोटी का किसी तरह से जुगाड़ करने वालों से लेकर आला पदों पर काम कर रहे एक्जीक्यूटिव तक पर होगा।
नौकरियों का संकट टेक्सटाइल जैसे उद्योगों में साफ झलक रहा है। कृषि के बाद देश में सबसे अधिक रोज़गार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर में मुश्किल हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते तीन सालों में संगठित क्षेत्र में काम कर रही 123 कॉटन मिलें बंद हो गईं, जिसमें 44,681 लोग काम कर रहे थे। तमिलनाडु और महाराष्ट्र में ऐसी मिलें सबसे ज़्यादा बंद हुई हैं।
जानकारों के मुताबिक कॉटन यार्न के दाम में गिरावट के अलावा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मांग में आई कमी की वजह से टेक्सटाइल सेक्टर का बुरा हाल हो गया है। अमेरिका और यूरोप में आर्थिक संकट ने मामले को और गंभीर बना दिया है। गौरतलब है कि देश का 65 फीसदी टेक्सटाइल निर्यात अमेरिका और यूरोप में होता है।