लखनऊ सरकार यदि टीईटी परीक्षा को निरस्त न करने के फैसले पर अपनी मुहर लगा देती है तो भी अभ्यर्थियों कई सवालों का जवाब देना उसके लिए मुश्किल होगा। प्रदेश भर से यहां आकर सड़क पर उतरे अभ्यर्थी पूछते हैं-आखिर हम कहां जाएं। हमारे लिए तो यह उम्मीदों का आखिरी दरवाजा है। परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों में आधे से अधिक ऐसे हैं जो 30 से 35 वर्ष की उम्र के बीच के हैं। अधिकांश की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी गांव की है। टीईटी पास करने के बाद सूबे में 72 हजार प्राइमरी टीचरों की नौकरी में एक उन्हें अपनी नजर आती है। नवंबर में हुई परीक्षा में 11 लाख में से लगभग दो लाख 70 हजार अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए थे। इनमें ऐसे अधिक है जिन्हें अन्य कई परीक्षाओं में असफलता के बाद इसमें सफलता मिली है। चूंकि सरकार मेरिट के आधार पर ही नियुक्ति का फैसला कर चुकी थी इसलिए उन्हें नौकरी सामने दिखाई दे रही थी। इसी बीच तत्कालीन निदेशक संजय मोहन द्वारा पैसे लेकर अभ्यर्थियों को पास कराने का मामला सामने आ गया और यह नौकरी भी उनकी पहुंच से दूर होती चली गई। प्रतापगढ़ की पट्टी तहसील से यहां आंदोलन में शामिल होने आए हरिश्याम कहते हैं कि सरकार में बैठे लोग ठगी और धांधली का फर्क नहीं समझना चाहते। टीईटी में कुछ लोगों के साथ ठगी हुई है और इसकी सजा सबको भुगतनी पड़ रही है। अभ्यर्थियों के भय और भी हैं। मेरिट के आधार पर यह साफ हो चुका है कि किसे नौकरी मिल पाएगी और किसे नहीं। नंबरों के हिसाब से अभ्यर्थी इसकी तक की गणना कर चुके हैं कि कितने नंबर पाने वाले तक सामान्य अभ्यर्थी सूची में आ जाएंगे। अब उन्हें लगता है कहीं सरकार मेरिट से नियुक्ति करने का फैसला सिर्फ इसलिए न बदल दे कि वह बसपा शासनकाल में लिया गया था। हरदोई के अविनाश यादव आक्रोश में कहते हैं कि सरकार मामले को राजनीतिक चश्मे से नहीं देख सकती। हम सिर्फ इसलिए ख्रारिज नहीं किए जा सकते कि हमने किसी दूसरे के शासनकाल में परीक्षा उत्तीर्ण की है। टीईटी अभ्यर्थी मांगों के साथ ही सिस्टम पर भी सवाल उठाते हैं। प्रदेश में अलग-अलग बोर्ड में मूल्यांकन के सिस्टम अलग हैं। अंग्रेजी स्कूलों में 90 प्रतिशत तक नंबर पाना आसान है। संस्कृत वाले भी अच्छे नंबर पाते हैं, लेकिन यूपी बोर्ड में ऐसा नहीं है। फर्रुखाबाद के दिव्येश कहते हैं-यदि प्राप्तांक के आधार पर मेरिट बनाई जाती है तो गांव के अभ्यर्थी दरकिनार हो जाएंगे। 2002 से पहले यूपी बोर्ड में साठ फीसदी नंबर पाना भी दुश्वार रहा है। ऐसे में हमारे साथ न्याय कैसे होगा।
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